रोती है चिल्लाती है,
माँ जब नित नहलाती है।
ठंडे पानी से डर लगता है,
शायद यही जताती है।
धमा चौकड़ी करती है,
मिट्टी धूल में सनती है।
जल्द पकड़ न आती है,
माँ फिर विनती करती है।
चलो नहा लो बिटिया रानी,
बंद करो अपनी मनमानी।
रगड़ रगड़ माँ मलती फिर,
बिटिया की न चलती फिर।
बिटिया रानी रोज नहाती,
तन मन दोनों स्वच्छ कराती।
दैवीय गुण है स्वच्छता,
माँ सिखलाती सभ्यता।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
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