Monday, February 19, 2024

स्वच्छता

रोती है चिल्लाती है,

माँ जब नित नहलाती है।

ठंडे पानी से डर लगता है,

शायद यही जताती है।


धमा चौकड़ी करती है,

मिट्टी धूल में सनती है।

जल्द पकड़ न आती है,

माँ फिर विनती करती है।


चलो नहा लो बिटिया रानी,

बंद करो अपनी मनमानी।

रगड़ रगड़ माँ मलती फिर,

बिटिया की न चलती फिर।


बिटिया रानी रोज नहाती,

तन मन दोनों स्वच्छ कराती।

दैवीय गुण है स्वच्छता,

माँ सिखलाती सभ्यता।


-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'

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