Saturday, May 2, 2020

मै कौन हूँ

मैं कौन हूँ
क्या हूँ
और क्यों हूँ ।

मेरा एक नाम है
तो क्या मै वो नाम हूँ
मै देख सकती हूँ
अपने आस पास
सुंदर दृश्य अद्भुत रंग
अनगिनत रूप
अनेक प्रवास
तो क्या मै दृश्य हूँ
या फिर मैं नेत्र हूँ ।

मै सुन सकती हूँ
नदियों मे बहते
जल की कल कल
झरनो के गीत
पछियों के कलरव
दूर कहीं से आती
घंटियों की आवाज
सुरों की सरगम को
संगत देते साज
तो क्या मैं ध्वनि हूँ
या हूँ मैं कान

मेरा एक
फलों का बगीचा है
जिसे मैंने ही सींचा है
और मै हूँ आजाद
मेरी जिह्वा ने चखे हैं
मीठे,कड़वे और
खट्टे फलों के स्वाद
तो क्या मै  जिह्वा हूँ
या फिर हूँ मै स्वाद

पुष्प हूँ सुगंध हूँ
या हूँ मै नाक ।

कैसा है यह अनुभव
और क्या है यह ज्ञान
कि मै देखती हूँ
पर दृश्य नहीं हूँ
नेत्र नहीं हूँ ।
सुनती हूँ
पर कंर्ण नहीं हूँ
ध्वनि नहीं हूँ ।
छूती हूँ पर स्पर्श नहीं हूँ
सतह नहीं हूँ चर्म नहीं हूँ ।
खाती हूँ पर दंत नहीं हूँ
फल नहीं हूँ अन्न नहीं हूँ
जिह्वा नहीं हूँ स्वाद नहीं हूँ ।

विचारों मे डूबी
अक्सर सोचती हूँ
कि मैं हर क्षण जानती हूँ
 कि मै सोच रही हूँ
तो क्या  मै विचार भी नहीं हूँ
मस्तिष्क भी नहीं हूँ

दृश्य बदल रहे हैं
ध्वनियाँ  बदल रही हैं
स्वाद बदल रहे हैं
सतह बदल रही है
विचार बदल रहे हैं
मस्तिष्क बदल रहे हैं।

सारे बदलाव को देख रही हूँ
किन्तु मै नहीं बदल रही हूँ
दृश्य को नेत्र
नेत्र को मस्तिष्क
और मस्तिष्क को
 मै देखती हूँ
अनुभव करती हूँ
'साक्षी' हूँ
हाँ मैं 'साक्षी' हूँ
पर कौन है
जो मेरा साक्षी है
यह अनुभव कर पाने मे
असमर्थ
मैं कौन हूँ
मैं कौन हूँ ॥

- देवेंद्र प्रताप वर्मा "



श्लोक-

"रूपं दृश्यं लोचनं दृक् तद्‌दृश्यं दृक् तु मानसम् ।
दृश्या  धीवृत्तयः  साक्षी   दृगेव  तु  न  दृश्यते ॥"

अर्थ -  नेत्र द्रष्टा हैं और रूप दृश्य हैफिर मन द्रष्टा है और नेत्रादि इन्द्रियाँ दृश्य हैंफिर बुद्धि द्रष्टा है और मन दृश्य है । अन्तमें बुद्धिकी वृत्तियोंका भी जो द्रष्टा हैवह साक्षी किसीका भी दृश्य नहीं है ।’ 

रूपं- form
दृश्यं- is perceived
लोचनं- eye
दृक्- is perceiver
तु तत्- that
दृश्यं- is perceived
मानसं- mind
दृक्- is perceiver
धीवृत्तयः - mind's modifications
दृश्या- are perceived
साक्षी- witness
दृक् एव- is verily the perceiver
तु- but
न- it is not
दृश्यते- perceived

The form is perceived and the eye is its perceiver, the eye is perceived and the mind is its perceiver, the mind (with its modifications) is perceived and the SELF/saakshee is verily the perceiver, but the SELF/WITNESS/saakshee is NOT perceived (by any other!)