Monday, February 19, 2024

मैं नन्ही मुस्कान तुम्हारी

मैं नन्ही मुस्कान तुम्हारी
मुस्कानों की वजह न छीनो,
सोन परी की कथा कहानी
नानी माँ की जुबां न छीनों।

दादी दादा चाची चाचा
भइया भाभी काकी काका,
सांझ ढले आँगन मे जमघट
रिश्तों की मखमल गर्माहट।
जीवन मे नवप्राण भरे जो,
आँगन की वो हवा न छीनो।

तुमने पगडंडी पर चलकर
खेतों की हरियाली देखी,
रिमझिम सावन की फुहार में
मदमाती पनियारी देखी।
सरसों के पीले फूलों से
धरती का श्रृंगार किया,
नन्हे मुस्काते बिरवे से
घर आँगन गुलजार किया।
फुलवारी में हरित कला की
बलखाती सी लता न छीनों।

बरगद पत्थर पीपल पूजा
नीम आम से भरा बगीचा,
शीतल पवन चले पुरवाई
अमराई में रात बिताई।
उन रातों में खलिहानों की
रखवाली की सजा न छीनों।

भेदभाव का भाव था गहरा
जात पात का कड़ा था पहरा,
फिर भी जब विपदा आती
दर्द में काया  डूबी जाती ,
गांव समूचा मदद को आता
राहत की चादर दे जाता।
नींद मधुमयी आती फिर तो
हवा बसंती गाती फिर तो,
उन गांवों के अपनेपन की
ऐसी पावन फिजा न छीनों।

कोयल कूके नित आंगन में
गौरैया की फुदकन घर में,
पंख फैलाये मोर नाचते
पपीहा गाये कुंज कानन में।
रात्रि अमावस में चंदा से
सूना होता है जब अम्बर,
धरती पर नन्हे दीपों की
जुगनू लहराते हैं चादर ।
दृश्य सुनहरे तुमने देखे
मुझसे उनका पता न छीनों।

ताल तलैया पोखर सूखे
बदरा जैसे नभ से रूठे,
धूल भरा है शहर तुम्हारा
नभ से बरस रहा अंगारा।
छाया वाले पेड़ कट गए
पथिक राह में गिरे निपट गए।
छद्म क्षुधा की रार रही है
हवा जलाकर मार रही है।
प्रकृति कहती सुनो ध्यान से
वसुंधरा की धरा न छीनों।
मैं नन्ही मुस्कान तुम्हारी
मुस्कानों की वजह न छीनों।

देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"

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