एक चींटी चली जा रही,
अपनी मस्ती में गा रही।
दूर शक्कर की एक ढेली,
दिख रही थी पड़ी अकेली।
बिटिया रानी उसी डगर पर,
चली झूमकर डग मग कर।
कदमों के नीचे न आये,
नन्ही चींटी दब न जाये।
आने वाली है विपदा,
चींटी को है नही पता।
दोनों ही मासूम अबोध,
पर किसको है इसका बोध।
निरपराध अपराधी होगी,
क्या चींटी की बर्बादी होगी।
नहीं! सृष्टि स्वयं संरक्षक है,
भक्षक ही रक्षक है।
नन्हे विवेक ने आंखे खोली,
बिटिया रानी टीटी बोली।
कदम बचाकर रखा डगमग,
नन्ही चींटी हुई सुरक्षित।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
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