फलों की टोकरी में फल रखे सेब के,
बाजार से लाई थी चुनकर माँ देख के।
सुंदर सजीले मधुर स्वाद के,
चमकदार सारे बेदाग से।
था एक सेब अधकुतरा हुआ,
माँ ने न जाना कि ये कब हुआ।
घर मे न चूहे न बिल्ली का आना,
फल किसने कुतरा कोई तो बताना।
तभी लुढ़कता एक और फल आया,
बिटिया ने फेंका उछल कर आया।
कुतरा हुआ वह भी पहले जैसा,
माँ ने समझा क्यों हुआ आज ऐसा।
पूरी हुई यूँ माँ की तहक़ीक़ात,
जब दिखे बिटिया के पहले “दो दाँत”।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
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